Friday, December 18, 2015

क्या वाकई अपराध जीत गया है...
       एक अपराधी जो इस समय बाल सुधार गृह में कैद है, उसका अपराध माफ़ी के लायक नहीं है. लेकिन वो छूटने वाला है. बाहर इस बात की बहस शुरू हो गयी है की उसे कैद से छूटना चाहिए या नहीं, लेकिन कोर्ट ने उसे छोड़ देने का आदेश दे दिया है, सरकार उसे 10000 रूपये देगी और एक सिलाई मशीन, पीड़ित माँ के आखों में आंसू हैं और पिता के चेहरे पर लाचारी, देश की संसद में उसके नाम का हंगामा है. ऐसे में वो क्या सोच रहा होगा ये तो नहीं पता हा लेकिन 16 दिसंबर 2012 की रात दक्षिणी दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती बस में जो अपराध हो रहा था उसका सबसे ज्यादा गुनहगार यही नाबालिक अपराधी था. बाकी अपराधियों ने भी उसी की तरफ इसारा करते हुए कहा था कि इसी नाबालिक अपराधी ने उन्हें इतने घृणित अपराध के लिए उकसाया था. लेकिन अब वो छूटने वाला है. वो बाहर निकलकर क्या करेगा ये भी नहीं पता हा लेकिन ऐसी ही प्रव्रिति रखने वाले बाकी नाबलिकों को ये भरोसा हो जायेगा की ऐसे अपराध की सजा मात्र क्या होगी. यहां बात अपराधी के उम्र की नहीं है बात उसके द्वारा किये गए अपराध की है. वो अपराध करने की किस शीमा को लांघ रहा है, उसका अपराध चोरी करना या डकैती डालना नहीं है वो इंसानियत को सर्मशार करने वाला बलात्कारी हत्यारा है. अपराधी की उम्र कम है लेकिन अपराध इतना बड़ा है की उसे माफ़ नहीं किया जा सकता, उसे फांसी न सही लेकिन जेल की सलाखों के पीछे तो रखा जा सकता है ताकि भविष्य में एक और निर्भया को जिल्लत की मौत मरने से रोका जा सके. जब बच्चा छोटा होता है तो उसे शेर और कुत्ते में फर्क पता नहीं होता है, वो दोनों के साथ खेलता हैं लेकिन ये समाज उसे बताता है की शेर के साथ खेलने और कुत्ते के साथ खेलने में क्या फर्क है. क्या इस अपराधी को जेल की सलाखों में कैद कर बाकी को ये सन्देश नहीं दिया जा सकता है की किसी महिला के साथ बलात्कार का मतलब क्या होता है. अगर ये अपराधी छूटता है तो फिर उस क्रांति का मतलब कुछ भी नहीं होगा जो दिसंबर की कपकपा देने वाली शर्दियों में दिल्ली की सड़कों पर उतरकर युवाओं ने दिखाई थी, फिर उस आंदोलन का मतलब भी कुछ नहीं होगा जो देश के कोने-कोने में लड़कियों ने अपनी सुरक्षा के लिए खड़ा किया था. फिर उस दिन ऐसा क्यों लग रहा था कि बलात्कार और हत्या जैसे अपराध करने वालों को भी मौत मिलेगी, फिर उस दिन ऐसा क्यों लग रहा था की आज के बाद देश में खुशहाली आएगी. क्या उन आंदोलनों और निर्भया की जान गवाने के बाद भी आज अपराधी जीत गया.! 

Sunday, August 2, 2015

याकूब मेमन की फांसी का जिन धर्मों के जो भी लोग विरोध कर रहे हैं वो लोग भारत को एक मुश्किल दौर की ओर ले जा रहे हैं... अगर ऐसे ही आतंक से नाता रखने वाले लोगों के समर्थन में भीड़ जमा होने लगी तो वो दिन दूर नहीँ जब इस देश के कोने-कोने में धामाके होंगे और वो निर्दोष लोग मारे जायेंगे जो घर का राशन खरीदने बाज़ारों में गये होंगे. कुछ राजनीतिज्ञ इस समाज में नफरत की मशाल लेकर घूम रहे हैं तो कुछ पैसों के लालची इस देश की हवाओं में ज़हर घोल रहे हैं. असल में इन्हें कुछ फर्क नहीँ पड़ता की फांसी किसे हो रही है और कौन लोग मारे जा रहे हैं, इनका काम सिर्फ नफरत फैलाना है. दरअसल हमारे देश के कुछ चंद वो लोग जो इस समय हम सभी के नेता बने हैं वो वोट बैंक बढ़ाने के लिये इस समाझ के अंदर ऐसी बाते पहुँचा रहे हैं जिनसे लोगों में असुरक्षा की भावना पैदा हो रही है और लोग आतंकियों के जनाजे में शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं. सरकारें चाह कर भी कुछ नहीँ कर सकती कियूकि अगली बार उन्हें फिर से सत्ता का सुख चाहिये. वकील पैसों के लिये रात को देश के सर्वोच्च न्यायालय को खुलवादेते हैं कियूकि उन्हें कानूनी दावपेंच मालूम हैं. न्यूज़ चैनल पूरी रात देश को ये बताती रहती है की ये अनर्थ हो रहा है और रात के ढाई तीन बजे उठी हुई जनता सोई हुई जनता को उठाकर कलयुग के इस काले इतिहास का गवाह बनने को कह रही है, इस देश की 70 फीसदी जनता रात को इसलिए जल्दी सो जाती है कियूकि उसे सुबह जल्दी उठकर काम पर जाना होता है. जो लोग काम पर जा रहे होते हैं उनमें वो भी लोग शामिल होते हैं जो अभी बहकावे में आकर आतंकी की मौत पर शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं और जब अगलीबार देश के कोने कोने मैं बम फटैंगे तो में यकीन के साथ कह सकता हूं की उसमें वो लोग भी मारे जायेंगे जो अभी बहकावे में आकर शक्ति प्रदर्शन में शामिल हैं..l