Journalist Indian: राजीव दीक्षित की मृत्यु कैसे हुई इस पर अब भी
कोई खुलकर न ही कह पाता है न ही किसी को पता है. क्या उस समय के तथाकथिक विदेशी
ताकतों या राजनेताओं ने कुछ भी सामने नहीं आने दिया था? और
न ही किसी मीडिया चैनल ने सही से दिखाया था. राजीव दीक्षित का नाम जेहन में आते ही
एक स्वदेशी को बढ़ावा देने वाले वैज्ञानिक और प्रखर राष्ट्रवादी वक्ता की छवि आंखों
के सामने आ जाती है. इसे संयोग कहें या बिडम्बना 30 नवंबर को ही राजीव जी का जन्म
हुआ था और 30 नवंबर के दिन ही वो काल के गाल में समा गये थे. लेकिन राजीव दीक्षित की
मृत्यू आज तक भी रहस्य बनी हुई है. भिलाई में भारत स्वाभिमान यात्रा के दौरान
उन्हें दिल का दौरा पड़ा जिससे 30 नवम्बर 2010 को उनकी रहस्यमय मौत हो गई. उनकी मृत्यु की वजह दिल का दौरा बताया जाता
रहा है, जो सत्य नहीं लगता
क्योंकि उनका एक व्याख्यान तो इस पर ही था कि बिना डॉक्टर और बिना दवा के स्वस्थ
कैसे रहें. राजीव दीक्षित की मृत्यु को शुरु से ही बड़ी साजिश बताया जाता रहा है. क्योंकि
उनके व्याख्यान लोगों को स्वदेशी बना रहे थे जो विदेशी कंपनियों और देशद्रोहियों को
सहन नहीं हो रहा था. ये अत्यंत गंभीर मामला है. लेकिन राजीव दीक्षित की मौत आज भी एक
रहस्य है. राजीव दीक्षित की अचनक मौत हो जोना और उनका पोस्टमार्टम भी नही होना
किसी गहरे साजिश की ओर इसारा करती है. जैसे मृत्यु के बाद राजीव दीक्षित के होठ
गहरे नीले और शरीर का हल्का नीला पड़ना, मीडिया का मौन व्रत धारण करना एक दो चैनेलों
के आलावा कोई भी मुख्य चैनलों ने राजीव दीक्षित की मृत्यु का समाचार प्रसारित नहीं
किया. राजीव दीक्षित की मृत्यु के कुछ वीडियो यूट्यूब पर देखे जिन्हें देखकर ये
लगता है कि उनकी मौत एक साजिश थी. कुछ वीडियो में साफ-साफ दिख रहा है कि राजीव
दीक्षित का शरीर कैसे काला पड़ गया है. सिर्फ यही एक वजह नहीं है राजीव दीक्षित की
मृत्यु को हत्या कहने की कई और भी वजहें हैं जिनसे पर्दा उठना अभी बाकी है. राजीव
दीक्षित की मौत के बाद उनका पोस्टमार्टम भी नही किया गया था. जबकि एसी मौतों में हमेसा
पोस्टमार्टम किया जाता है....यहां पर सबसे बड़ा
सवाल ये भी उठता है कि अगर राजीव दीक्षित की मौत हुई थी तो किस वजह से हुई थी.? इस पर सोचने पर
लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु की याद आती है दोनों की मृत्यु के लक्षण बहुत
मिलते जुलते हैं. अगर ये एक सामान्य मौत न होकर एक हत्या है तो इस राज से पर्दा
जरुर उठना चाहिए?
Wednesday, November 30, 2016
Tuesday, January 19, 2016
बेघर स्वर्ग के बाशिंदे
बेघर स्वर्ग के बाशिंद
भारत में जिसे स्वर्ग की उपाधि प्राप्त है, वो
कश्मीर भारत की आज़ादी के बाद से ही पाकिस्तान की धूर्तता का गढ़ बना रहा ।
जवाहरलाल नेहरू की एक गलती का फायदा उठा कर पाकिस्तान हमेशा कश्मीर को अपनी जागीर
समझता रहा है। कश्मीर को कब्जाने के लिए 1947 से ही वो इस प्रयास में रहा कि कैसे
कश्मीर को मुस्लिम बहुल राज्य़ किया जाए। इसी क्रम में वहां आतंक के बल पर कश्मीर
की हिंदू आबादी को कश्मीर से बाहर खदेड़ दिया। आज लाखों की तादाद में कश्मीरी पंडित अपने घरों
से बेदख़ल हैं. ये विस्थापित कश्मीरी पंडित जो अपने ही देश में स्वंय को शरणार्थी
कहना ज़्यादा सही समझते हैं, भारत भर में ही नहीं विदेशों में भी फैले हुए
हैं. इनकी आंखों में पिछले 27 सालों से अपनी धरती से
उजड़ने का गम आंसू बन कर लगातार गिर रहा है। दर-बदर करने वाले आतंकियों के खिलाफ
इनके मन में बेहद रोष है। इन पर कैसे-कैसे जुल्म ढाए गए हैं, उसकी तस्वीर आज भी
इन्हें रातों में सोने नहीं देती। कैसे इनके घरों को जलाया गया, कैसे इन्हें रोज़
हथियारों का खौफ दिखा कर घाटी छोड़ देने की धमकी दी जाती थी। कश्मीरी पंडितों का
मानना है कि आतंकवादियों ने वादी में जेहाद के नाम पर पाक की कश्मीर कब्जाने की
अपनी मंशा को चढ़ाने के लिए उन्हें जबरदस्ती कश्मीर से निकाला है। भारत में जहाँ भगवान् श्री राम को भी 14 साल
के वनवास के बाद घर वापसी का सौभाग्य प्राप्त हो गया था, उसी
देश में कश्मीरी पंडितों को अपने घर कश्मीर को छोड़े हुए 27 साल बीत गए लेकिन घर
वापसी की राह अभी भी अंधकारमय है । लगभग 7 लाख से ज्यादा कश्मीरी परिवार भारत के विभिन्न
हिस्सों व् रिफ्यूजी कैम्प में शरणार्थियों की तरह जीवन बिताने को मजबूर है।
कश्मीरी पंडितों को जिस प्रकार एक
व्यापक साजिश के तहत कश्मीर छोड़ने पर विवश होना पड़ा था, ये
जग जाहिर है। आतंकी इस बात को अच्छी तरह समझते थे कि जब तक कश्मीरी पंडित कश्मीर
में है, तब तक वो अपने इरादों में कामयाब नहीं हो
पायेगें। इसलिए सबसे पहले इन्हें निशाना बनाया गया। 90 के दशक में आईएसआई नें एक व्यापक साजिश के तहत
कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से बाहर निकालने का षड्यंत रचा। उनका मानना था कि यदि
एक बार ये कश्मीर से पंडित बाहर निकल जायें तो फिर कश्मीर पर कब्जा आसान हो
जायेगा। कश्मीरी पंडित घाटी में भारतीय पक्ष के सबसे मजबूत स्तंभ माने जाते थे।
शेख अब्दुल्ला ने अपनी आत्मकथा आतिश-ए-चिनार में इन्हें दिल्ली के पांचवें
स्तंभकार और जासूस कहकर संबोधित किया था। पंडित समुदाय के प्रमुख सदस्यों का
विशेषतौर पर नरसंहार किया गया। आखिरकार अपने जान बचाने के लिए कश्मीरी पंडितों को
अपनी जन्म भूमि को छोड़कर शरणार्थियों की तरह जीवन बिताने के लिए मजबूर होना पड़ा।
कश्मीर की धरती पर जितना हक मुसलमानों का है,
उतना ही हक इन कश्मीरी पंडितों का भी
है, और कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत का जो सपना सरदार पटेल ने देखा था, उसमें तब
तक कमी रहेगी जब तक पीओके समेत पूरा कश्मीर भारत के दूसरे राज्यों जैसा स्वतंत्र
नहीं होगा। जब तक कश्मीरी पंडितों को दोबारा उनकी जन्मभूमि पर रहने का अधिकार नहीं
मिलेगा.
Sunday, January 17, 2016
मालदा का सच.
मालदा का सच.
क्या दंगे सांप्रदायिक होते हैं!
मुज़फ्फरनगर, बरेली, हाजीपुर , दौसा, असम( डिब्रुगढ़), और मालदा ये भारत के वो शहर हैं जिन्हें दंगों की आग में झोंक दिया गया. 125 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में 20 करोड़ की आवादी वाले मुस्लिम समाज में नफरत की मसाल लेकर घूमने वाले मक्कारों ने न जाने कितनों के घर जला दिए. और इन्हें साम्प्रदायिकता का नाम दे दिया गया. क्या हम कभी ये सोचने का प्रयास करते हैं कि जिसे सांप्रदायिक दंगों का नाम दिया जाता है उनके पीछे की सचाई असल में क्या है? क्या मुजफ्फरनगर दंगा सांप्रदायिक था या फिर बरेली, दौसा, मालदा के दंगे सांप्रदायिक थे. मालदा में जो कुछ हुआ उसके पीछे की कहानी भी कुछ ऐसी है. दरअसल पश्चिमी बंगाल के मालदा जिले में थाने में रखे गए रिकॉर्ड को जलाने के लिए एक साजिश रची गयी और मुस्लिम समुदाई को इस्लाम और पैगम्बर के नाम पर भड़काया गया. एक लंबी प्लानिंग कर तकरीबन 2 लाख मुस्लिमों को सड़कों पर उतारा गया और फिर कलियाचक थाने में आग लगा दी गयी, जिससे कि मालदा से सटे बांग्लादेश से होने वाली अवैध तस्करी से जुड़े रिकार्ड को जलाया जा सके. सोचो कितनी गहरी साजिश रची गयी होगी. वो लोग कितने शातिर शैतान होंगे. जिन्होंने इतनी गहरी साजिश रचकर देश में नफरत फ़ैलाने का काम किया. ममता सरकार इसलिए चुप है क्योंकि उसे आने वाले चुनाओं में मुस्लिम वोट चाहिए. बीजेपी रैली करना चाहती है लेकिन उसपर रोक है. ममता को डर है कि बीजेपी रैली की आड़ में साम्प्रदायिकता का माहौल पैदा कर ममता के लिए मुश्किल न कर दे. पीड़ित जनता की कोई सुनवाई नहीं हो रही है, राजनीतिक पंडित इसे बीजेपी की साजिश बता रहे हैँ. लेकिन स्थानीय लोगोँ से बातचीत के बात ये पता चलता है कि सांप्रदायिक तनाव जैसी कोई बात थी ही नहीं, मुस्लिम बहूल वाले कलियाचक में हिन्दू और मुस्लमान बरसों से आपसी सौहार्द के साथ रहते हैं. दंगे वाली जगह पर कलियाचक थाने के बगल में स्थित मंदिर और मंदिर के पुजारी दोनों सुरक्षित हैं, जबकि मुजफ्फर नगर में राजनीतिक साजिश के तहत दोनों समुदायों को एक दूसरे के खून का प्यासा बना दिया गया था. ऐसे में सवाल ये उठाना लाजमी है कि क्या लाखों की भीड़ सिर्फ थाना जलाने के लिए जमा की गई थी. हो सकता है कि आने वाले चुनाओं में कोई अफीम माफ़िया चुनाव लड़ना चाहता हो और कलियाचक थाने में उसके काले कामों की लिस्ट को मिटाने के लिए ऐसी साजिश रची गयी हो. अब सवाल वही खड़ा होता है जहां से हमने शुरूआत की थी कि असल में दंगे सांप्रदायिक होते हैं? या उन्हें सांप्रदायिक बनाया जाता है !
क्या दंगे सांप्रदायिक होते हैं!
मुज़फ्फरनगर, बरेली, हाजीपुर , दौसा, असम( डिब्रुगढ़), और मालदा ये भारत के वो शहर हैं जिन्हें दंगों की आग में झोंक दिया गया. 125 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में 20 करोड़ की आवादी वाले मुस्लिम समाज में नफरत की मसाल लेकर घूमने वाले मक्कारों ने न जाने कितनों के घर जला दिए. और इन्हें साम्प्रदायिकता का नाम दे दिया गया. क्या हम कभी ये सोचने का प्रयास करते हैं कि जिसे सांप्रदायिक दंगों का नाम दिया जाता है उनके पीछे की सचाई असल में क्या है? क्या मुजफ्फरनगर दंगा सांप्रदायिक था या फिर बरेली, दौसा, मालदा के दंगे सांप्रदायिक थे. मालदा में जो कुछ हुआ उसके पीछे की कहानी भी कुछ ऐसी है. दरअसल पश्चिमी बंगाल के मालदा जिले में थाने में रखे गए रिकॉर्ड को जलाने के लिए एक साजिश रची गयी और मुस्लिम समुदाई को इस्लाम और पैगम्बर के नाम पर भड़काया गया. एक लंबी प्लानिंग कर तकरीबन 2 लाख मुस्लिमों को सड़कों पर उतारा गया और फिर कलियाचक थाने में आग लगा दी गयी, जिससे कि मालदा से सटे बांग्लादेश से होने वाली अवैध तस्करी से जुड़े रिकार्ड को जलाया जा सके. सोचो कितनी गहरी साजिश रची गयी होगी. वो लोग कितने शातिर शैतान होंगे. जिन्होंने इतनी गहरी साजिश रचकर देश में नफरत फ़ैलाने का काम किया. ममता सरकार इसलिए चुप है क्योंकि उसे आने वाले चुनाओं में मुस्लिम वोट चाहिए. बीजेपी रैली करना चाहती है लेकिन उसपर रोक है. ममता को डर है कि बीजेपी रैली की आड़ में साम्प्रदायिकता का माहौल पैदा कर ममता के लिए मुश्किल न कर दे. पीड़ित जनता की कोई सुनवाई नहीं हो रही है, राजनीतिक पंडित इसे बीजेपी की साजिश बता रहे हैँ. लेकिन स्थानीय लोगोँ से बातचीत के बात ये पता चलता है कि सांप्रदायिक तनाव जैसी कोई बात थी ही नहीं, मुस्लिम बहूल वाले कलियाचक में हिन्दू और मुस्लमान बरसों से आपसी सौहार्द के साथ रहते हैं. दंगे वाली जगह पर कलियाचक थाने के बगल में स्थित मंदिर और मंदिर के पुजारी दोनों सुरक्षित हैं, जबकि मुजफ्फर नगर में राजनीतिक साजिश के तहत दोनों समुदायों को एक दूसरे के खून का प्यासा बना दिया गया था. ऐसे में सवाल ये उठाना लाजमी है कि क्या लाखों की भीड़ सिर्फ थाना जलाने के लिए जमा की गई थी. हो सकता है कि आने वाले चुनाओं में कोई अफीम माफ़िया चुनाव लड़ना चाहता हो और कलियाचक थाने में उसके काले कामों की लिस्ट को मिटाने के लिए ऐसी साजिश रची गयी हो. अब सवाल वही खड़ा होता है जहां से हमने शुरूआत की थी कि असल में दंगे सांप्रदायिक होते हैं? या उन्हें सांप्रदायिक बनाया जाता है !
Sunday, January 10, 2016
मौलवी ने लाईव प्रोग्राम में दी गला काटने की धमकी.
मौलवी ने लाईव
प्रोग्राम में दी गला काटने की धमकी.
...सुदर्शन न्यूज़
पर प्रसारित हुए कार्यक्रम देश बड़ा या धर्म में मुसलामनों को रिप्रजेंट कर रहे
मौलवी मुक्ती एजाज की धमकी की चौतरफा आलोचना हो रही है. मौलवी मुफ्ती एजाज ने
सुदर्शन न्यूज़ के स्टूडियों में धमकी दी थी कि जो भी उनके धर्म के खिलाफ बोलेगा
वो उसका गला काट देंगे. दरअसल
पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में निकाले गए मुस्लिमों की रैली में हिंसक झड़पों को
लेकर प्रोग्राम रखा गया था. और इस प्रोग्राम में मौलवी मुफ्ती एजाज मुसलामनों के रिप्रजेंटेटर के
तौर पर आए थे. वो डिवेट में बात-बात पर भड़क रहे थे.. लेकिन हद तो तब हो गइ जब
मुफ्ती एजाज ने कुछ ऐसा कह दिया जिसकी उनसे अपेक्षा नहीं की जा रही थी. बात यहीं खत्म नही हुई, मुफ्ती एजाज उस प्रोग्राम
के एंकर तक को धमकाने लगे. मुफ्ती एजाज के ऐसे
बयान और बर्ताव का चौतरफा विरोध हो रहा है...उधर बीजेपी के नेता सुब्रहमण्यम
स्वामी ने भी ऐसे बयानों की निंदा करते हुए कहा कि ऐसे बयान देश के लिए घातक हैं. दरअसल पश्चिम बंगाल में रविवार को अचानक करीब 2.5 लाख मुसलमान नेशनल
हाइवे नंबर 34 पर उतर आए और हिंसा फैलाने लगे. देखते ही देखते भीड़ ने करीब दो
दर्जन गाडि़यों में आग लगा दी और मालदा जिले के कालियाचक पुलिस स्टेरशन पर हमला कर
दिया। इस हिंसा की जड़ उत्तरप्रदेश के सपा नेता आजमखान के जुबान में है.. उन्होंने
ही पहले कुछ ऐसा बयान दिया था जिसके चलते महौल असहिष्णु हुआ... एक ओर देश में
असहिष्णुता को लेकर माहौल गरम है और उसके बाद ऐसी हिंसा और फिर बयान देने वाले लोग
कहां तक सहिष्णु हैं...इन सभी घटनाओं के बीच वो लोग भी सोए हैं जो पिछले दिनों
अवार्ड लौटाने का रोना रो रहे थे..अब मैं उन सूपरस्टारों से भी सवाल पूछ रहा हूं जिनके
बच्चे अखबार पड़ने से भी डरते हैं क्या अब ऐसी खबरों से उन्हें असहिष्णु माहौल नही
दिखता.?
सवाल ये भी कि आखिर असहिष्णु है कौन?
Saturday, January 9, 2016
राम नाम का विरोध क्यों...?
राम नाम का विरोध क्यों...?
कहते हैं राम नाम सत्य है, मगर वो नाम जो सत्य है उस पर शायद कलयुग का
प्रकोप पड़ गया है। आज हिंदू बहुल राष्ट्र में ही अपने इष्ट देव का विरोध हो रहा
है...कहा जा रहा है कि वैसे तो इस देश की संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए राम मंदिर
बनना जरूरी है... लेकिन उस राम नाम पर आज राजनीति हो रही है...आखिर भगवान राम के
नाम पर संग्राम क्यों हो रहा है... इस समय सबसे बड़ा सवाल यही बना है... क्या वो
लोग जो दिल्ली विश्वविद्धायलय में राम पर हो रहे सेमिनार का विरोध कर रहे हैं वो भगवान
श्रीराम को नही मानते या फिर इस विरोध के पीछे की कहानी कहीं और से लिखी जा रही
है... दरअसल दिल्ली यूनिवर्सिटी के आर्ट फैकल्टी में एबीवीपी ने बीजेपी नेता
सुब्रहमण्यम स्वामी की आगुआइ में दो दिन का कार्यक्रम रखा... राम जन्मभूमि उभरता
परिदृश्य नाम के इस कार्यक्रम का मकसद भगवान राम पर चर्चा करना है... अंदर देश भर
से आए हुए इतिहासकार भगवान राम का नाम जप रहे थे लेकिन बाहर इस सैमिनार का विरोध
हो रहा था... दो दिन चलने वाले इस कार्यक्रम में 50 रिसर्च पेपर पेश किए जाने हैं..
और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर चर्चा करना है...लेकिन विरोधियों ने बाहर हंगामा
करना शुरु कर दिया... विरोध करने वाले छात्र संगठनों में एनएसयूआई, आइसा,
सीवाईएसएस, एसएफआईओ...छात्र संगठन शामिल थे... ऐसे में विरोधियों पर सवाल उठने
शुरु हो गए हैं.. कहा जा रहा है कि छात्र महज एक मोहरा हैं इसके पीछे की कहानी
कहीं और ही लिखी जा रही है... क्योंकि ये छात्र संगठन कांग्रेस और आमआदमी जैसे
पार्टियों से जुड़े हैं... सैमिनार का विरोध कर रहे छात्र संगठनों का कहना है कि
सैमिनार के जरिए कैंपस का माहौल खराब किया जा रहा है लेकिन सैमिनार का आयोजन करने
वाली संस्था अरुंधती वशिष्ठ अनुसंधान का कहना है कि सैमिनार में ऐसी कोई भी बात
नहीं कही गई है जिससे माहौल खराब हो... उधर सैमिनार की शुरुआत बीजेपी नेता
सुब्हमणयम स्वामी के भाषणों से हुई... स्वामी को पूरा यकीन है कि राम मंदिर का काम
इस साल शुरू होकर ही रहेगा स्वामी बोले मैंने आपसे कहा था कि 2जी घोटाले में राजा
जेल जाएंगे, वो गए. मैंने सेतुसमुद्रम
के बारे में जो कहा था, हुआ. मैंने नेशनल हेराल्ड केस के लिए
कुछ कहा है, वो भी होगा. अब मैं राम मंदिर के बारे में कह
रहा हूं. ये भी बनेगा... वहीं संघ विचारक राकेश सिन्हा ने कहा है कि सेमिनार के
खिलाफ हो रहा विरोध फासीवादी है...और विश्व विद्लाय में सेमिनार करना गलत कैसे हो
सकता है....यहां ये भी गौर करने वाली बात है कि बाटला हाउस एनकांउंटर में एक आरोपी
को बुला कर इसी दिल्ली विश्वविद्यालय में ये चर्चा कराई गई थी कि बाटला में मारे
गए आतंकी आम शरीफ लोग थे, और पुलिस के शहीद जवानों ने फर्जी एनकांउटर किया था। अब ये
सवाल उठता है कि भारत की एक युनीवर्सिटी में राम के नाम पर चर्चा करना गलत है या
बाटला हाउस के आतंकवादियों को शरीफ साबित करने पर चर्चा करना गलत है। सोचिए क्या
ये असिष्णुता नहीं है...हैदराबाद के एक युनीवर्सिटी में बीफ पार्टी होती है उसपर
कोई नहीं बोलता.. देश किस दिशा में जा रहा है...
Saturday, January 2, 2016
पंजाब आतंकियों की पहली पसंद !
अक्सर जम्मू कश्मीर की खूबसूरत वादियों में तांडव करने वाले आतंकी अब भारत पर हमले के लिए सिखों की नगरी पंजाब को ज्यादा पसंद करने लगे हैं. तभी पंजाब में एक के बाद एक हमले हो रहे हैं. पश्चिम में पाकिस्तानी पंजाब, उत्तर में जम्मू और कश्मीर लिए ये राज्य भौगोलिक दृष्टी से तो काफी संपन्न है लेकिन खालिस्तानियों ने पंजाब को हमेशा कमजोर किया है. सत्तर के दशक में पंजाब में अकालियों और खालिस्तानियों के बीच हुए झड़प का फायदा उठाकर कांग्रेस ने अकालीदल का जनाधार ख़त्म करने के लिए जनरैल सिंह भिंडरवाले को ताकत दी, लेकिन भिंडरवाला इतना शक्ति शाली हो गया कि उसने कांग्रेस को ठेंगा दिखाकर अपनी पूरी ताकत खालिस्तान के समर्थन में लगा दी. उधर पाकिस्तान भी खालिस्तानियों की मदद करने लगा जिसका नतीजा ऑपरेशन ब्लू स्टार और इन्दिरा गांधी की हत्या के रूप में भुगतना पड़ा, जिसके जीते जागते सबसे बड़े प्रत्यक्ष दर्शी भारत के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल हैं. अजीत डोभाल ने ऑपरेशन ब्लू स्टार में पाक आईएसआई के अधिकारी की भूमिका निभाई थी. एक बार फिर अमेरिका, यूरोप जैसे देशों में रह रहे खालिस्तान के पुराने नेता पाकिस्तान के जरिए पंजाब का माहौल बिगड़ने की योजना बनाने में लगे हैं. वो चाहते हैं की पंजाब में एक बार फिर खालिस्तान की मांग बुलंद हो इसके पीछे राजनीतिक साजिशें भी हो सकती है, पाकिस्तान और isi भी यही चाहता है इसका सबूत पिछले दिनों पंजाब में हुए धार्मिक उन्माद और गुरदासपुर में हुआ आतंकी हमला है. ख़ुफ़िया एजेंसियों ने अलर्ट जारी कर बता दिया था की आतंकी हाफिज सईद ने isi की मदद से पंजाब में धार्मिक उन्माद फ़ैलाने के लिए आतंकी भेजे हैं. पाकिस्तान सालों से जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों को तो पंजाब में खालिस्तानियों को बरगलाता आया है. एक बार फिर पठानकोट के आतंकी हमले ने सबकी पोल खोल दी है. देश का राजनीतिक प्रतिपक्ष सरकार की विदेश नीति और मोदी के अफगानिस्तान से बाया पाकिस्तान होते हुए भारत आने को जिम्मेदार ठहरा रह है. पंजाब सरकार इसे सडयंत्र मान रही है . इन सभी घटनक्रमों के बीच पंजाब निशाने पर है. और आतंकी सेना की वर्दी पहनकर एयरफोर्स के एयरबेस तक पहुच रहे हैँ. भारतीय सेना में isi के जासूस सरकारी पैसे पर काम कर रहे हैं और खुफिया जानकारी पाकिस्तान पंहुचा रहे हैँ, ऐसे में आप किसे जिम्मेदार मानोगे? जब आतंक के लिए इतने लोग काम कर रहे हैं, अगली बार फिर पंजाब की धरती पर अगर पाकिस्तानी आतंकी दिखते हैं तो ज्यादा आश्चर्य नहीं होगा.।
अक्सर जम्मू कश्मीर की खूबसूरत वादियों में तांडव करने वाले आतंकी अब भारत पर हमले के लिए सिखों की नगरी पंजाब को ज्यादा पसंद करने लगे हैं. तभी पंजाब में एक के बाद एक हमले हो रहे हैं. पश्चिम में पाकिस्तानी पंजाब, उत्तर में जम्मू और कश्मीर लिए ये राज्य भौगोलिक दृष्टी से तो काफी संपन्न है लेकिन खालिस्तानियों ने पंजाब को हमेशा कमजोर किया है. सत्तर के दशक में पंजाब में अकालियों और खालिस्तानियों के बीच हुए झड़प का फायदा उठाकर कांग्रेस ने अकालीदल का जनाधार ख़त्म करने के लिए जनरैल सिंह भिंडरवाले को ताकत दी, लेकिन भिंडरवाला इतना शक्ति शाली हो गया कि उसने कांग्रेस को ठेंगा दिखाकर अपनी पूरी ताकत खालिस्तान के समर्थन में लगा दी. उधर पाकिस्तान भी खालिस्तानियों की मदद करने लगा जिसका नतीजा ऑपरेशन ब्लू स्टार और इन्दिरा गांधी की हत्या के रूप में भुगतना पड़ा, जिसके जीते जागते सबसे बड़े प्रत्यक्ष दर्शी भारत के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल हैं. अजीत डोभाल ने ऑपरेशन ब्लू स्टार में पाक आईएसआई के अधिकारी की भूमिका निभाई थी. एक बार फिर अमेरिका, यूरोप जैसे देशों में रह रहे खालिस्तान के पुराने नेता पाकिस्तान के जरिए पंजाब का माहौल बिगड़ने की योजना बनाने में लगे हैं. वो चाहते हैं की पंजाब में एक बार फिर खालिस्तान की मांग बुलंद हो इसके पीछे राजनीतिक साजिशें भी हो सकती है, पाकिस्तान और isi भी यही चाहता है इसका सबूत पिछले दिनों पंजाब में हुए धार्मिक उन्माद और गुरदासपुर में हुआ आतंकी हमला है. ख़ुफ़िया एजेंसियों ने अलर्ट जारी कर बता दिया था की आतंकी हाफिज सईद ने isi की मदद से पंजाब में धार्मिक उन्माद फ़ैलाने के लिए आतंकी भेजे हैं. पाकिस्तान सालों से जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों को तो पंजाब में खालिस्तानियों को बरगलाता आया है. एक बार फिर पठानकोट के आतंकी हमले ने सबकी पोल खोल दी है. देश का राजनीतिक प्रतिपक्ष सरकार की विदेश नीति और मोदी के अफगानिस्तान से बाया पाकिस्तान होते हुए भारत आने को जिम्मेदार ठहरा रह है. पंजाब सरकार इसे सडयंत्र मान रही है . इन सभी घटनक्रमों के बीच पंजाब निशाने पर है. और आतंकी सेना की वर्दी पहनकर एयरफोर्स के एयरबेस तक पहुच रहे हैँ. भारतीय सेना में isi के जासूस सरकारी पैसे पर काम कर रहे हैं और खुफिया जानकारी पाकिस्तान पंहुचा रहे हैँ, ऐसे में आप किसे जिम्मेदार मानोगे? जब आतंक के लिए इतने लोग काम कर रहे हैं, अगली बार फिर पंजाब की धरती पर अगर पाकिस्तानी आतंकी दिखते हैं तो ज्यादा आश्चर्य नहीं होगा.।
Subscribe to:
Posts (Atom)