Tuesday, January 19, 2016

बेघर स्वर्ग के बाशिंदे

बेघर स्वर्ग के बाशिंद
भारत में जिसे स्वर्ग की उपाधि प्राप्त है, वो कश्मीर भारत की आज़ादी के बाद से ही पाकिस्तान की धूर्तता का गढ़ बना रहा । जवाहरलाल नेहरू की एक गलती का फायदा उठा कर पाकिस्तान हमेशा कश्मीर को अपनी जागीर समझता रहा है। कश्मीर को कब्जाने के लिए 1947 से ही वो इस प्रयास में रहा कि कैसे कश्मीर को मुस्लिम बहुल राज्य़ किया जाए। इसी क्रम में वहां आतंक के बल पर कश्मीर की हिंदू आबादी को कश्मीर से बाहर खदेड़ दिया। आज लाखों की तादाद में कश्मीरी पंडित अपने घरों से बेदख़ल हैं. ये विस्थापित कश्मीरी पंडित जो अपने ही देश में स्वंय को शरणार्थी कहना ज़्यादा सही समझते हैं, भारत भर में ही नहीं विदेशों में भी फैले हुए हैं. इनकी आंखों में पिछले 27 सालों से अपनी धरती से उजड़ने का गम आंसू बन कर लगातार गिर रहा है। दर-बदर करने वाले आतंकियों के खिलाफ इनके मन में बेहद रोष है। इन पर कैसे-कैसे जुल्म ढाए गए हैं, उसकी तस्वीर आज भी इन्हें रातों में सोने नहीं देती। कैसे इनके घरों को जलाया गया, कैसे इन्हें रोज़ हथियारों का खौफ दिखा कर घाटी छोड़ देने की धमकी दी जाती थी। कश्मीरी पंडितों का मानना है कि आतंकवादियों ने वादी में जेहाद के नाम पर पाक की कश्मीर कब्जाने की अपनी मंशा को चढ़ाने के लिए उन्हें जबरदस्ती कश्मीर से निकाला है। भारत में जहाँ भगवान् श्री राम को भी 14 साल के वनवास के बाद घर वापसी का सौभाग्य प्राप्त हो गया था, उसी देश में कश्मीरी पंडितों को अपने घर कश्मीर को छोड़े हुए 27 साल बीत गए लेकिन घर वापसी की राह अभी भी अंधकारमय है । लगभग 7 लाख से ज्यादा कश्मीरी परिवार भारत के विभिन्न हिस्सों व् रिफ्यूजी कैम्प में शरणार्थियों की तरह जीवन बिताने को मजबूर है।

कश्मीरी पंडितों को जिस प्रकार एक व्यापक साजिश के तहत कश्मीर छोड़ने पर विवश होना पड़ा था, ये जग जाहिर है। आतंकी इस बात को अच्छी तरह समझते थे कि जब तक कश्मीरी पंडित कश्मीर में है, तब तक वो अपने इरादों में कामयाब नहीं हो पायेगें। इसलिए सबसे पहले इन्हें निशाना बनाया गया। 90 के दशक में आईएसआई नें एक व्यापक साजिश के तहत कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से बाहर निकालने का षड्यंत रचा। उनका मानना था कि यदि एक बार ये कश्मीर से पंडित बाहर निकल जायें तो फिर कश्मीर पर कब्जा आसान हो जायेगा। कश्मीरी पंडित घाटी में भारतीय पक्ष के सबसे मजबूत स्तंभ माने जाते थे। शेख अब्दुल्ला ने अपनी आत्मकथा आतिश-ए-चिनार में इन्हें दिल्ली के पांचवें स्तंभकार और जासूस कहकर संबोधित किया था। पंडित समुदाय के प्रमुख सदस्यों का विशेषतौर पर नरसंहार किया गया। आखिरकार अपने जान बचाने के लिए कश्मीरी पंडितों को अपनी जन्म भूमि को छोड़कर शरणार्थियों की तरह जीवन बिताने के लिए मजबूर होना पड़ा। कश्मीर की धरती पर जितना हक मुसलमानों का है, उतना ही हक इन कश्मीरी पंडितों का भी है, और कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत का जो सपना सरदार पटेल ने देखा था, उसमें तब तक कमी रहेगी जब तक पीओके समेत पूरा कश्मीर भारत के दूसरे राज्यों जैसा स्वतंत्र नहीं होगा। जब तक कश्मीरी पंडितों को दोबारा उनकी जन्मभूमि पर रहने का अधिकार नहीं मिलेगा.

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