Sunday, January 17, 2016

मालदा का सच.

मालदा का सच.
क्या दंगे सांप्रदायिक होते हैं!
मुज़फ्फरनगर, बरेली, हाजीपुर , दौसा, असम( डिब्रुगढ़), और मालदा ये भारत के वो शहर हैं जिन्हें दंगों की आग में झोंक दिया गया. 125 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में 20 करोड़ की आवादी वाले मुस्लिम समाज में नफरत की मसाल लेकर घूमने वाले मक्कारों ने न जाने कितनों के घर जला दिए. और इन्हें साम्प्रदायिकता का नाम दे दिया गया.  क्या हम कभी ये सोचने का प्रयास करते हैं कि जिसे सांप्रदायिक दंगों का नाम दिया जाता है उनके पीछे की सचाई असल में क्या है? क्या मुजफ्फरनगर दंगा सांप्रदायिक था या फिर बरेली, दौसा, मालदा के दंगे सांप्रदायिक थे. मालदा में जो कुछ हुआ उसके पीछे की कहानी भी कुछ ऐसी है. दरअसल पश्चिमी बंगाल के मालदा जिले में थाने में रखे गए रिकॉर्ड को जलाने के लिए एक साजिश रची गयी और मुस्लिम समुदाई को इस्लाम और पैगम्बर के नाम पर भड़काया गया. एक लंबी प्लानिंग कर तकरीबन 2 लाख मुस्लिमों को सड़कों पर उतारा गया और फिर कलियाचक थाने में आग लगा दी गयी,  जिससे  कि मालदा से सटे बांग्लादेश से होने वाली अवैध तस्करी से जुड़े रिकार्ड को जलाया जा सके. सोचो कितनी गहरी साजिश रची गयी होगी. वो लोग कितने शातिर शैतान होंगे. जिन्होंने इतनी गहरी साजिश रचकर देश में नफरत फ़ैलाने का काम किया. ममता सरकार इसलिए चुप है क्योंकि उसे आने वाले चुनाओं में मुस्लिम वोट चाहिए. बीजेपी रैली करना चाहती है लेकिन उसपर रोक है. ममता को डर है कि बीजेपी रैली की आड़ में साम्प्रदायिकता का माहौल पैदा कर ममता के लिए मुश्किल न कर दे. पीड़ित जनता की कोई सुनवाई नहीं हो रही है, राजनीतिक पंडित इसे बीजेपी की साजिश बता रहे हैँ. लेकिन स्थानीय लोगोँ से बातचीत के बात ये पता चलता है कि सांप्रदायिक तनाव जैसी कोई बात थी ही नहीं, मुस्लिम बहूल वाले कलियाचक में हिन्दू और मुस्लमान बरसों से आपसी सौहार्द के साथ रहते हैं. दंगे वाली जगह पर कलियाचक थाने के बगल में स्थित मंदिर और मंदिर के पुजारी दोनों सुरक्षित हैं, जबकि मुजफ्फर नगर में राजनीतिक साजिश के तहत दोनों समुदायों को एक दूसरे के खून का प्यासा बना दिया गया था. ऐसे में सवाल ये उठाना लाजमी है कि क्या लाखों की भीड़ सिर्फ थाना जलाने के लिए जमा की गई थी.  हो सकता है कि आने वाले चुनाओं में कोई अफीम माफ़िया चुनाव लड़ना चाहता हो और कलियाचक थाने में उसके काले कामों की लिस्ट को मिटाने के लिए ऐसी साजिश रची गयी हो. अब सवाल वही खड़ा होता है जहां से हमने शुरूआत की थी कि असल में दंगे सांप्रदायिक होते हैं? या उन्हें सांप्रदायिक बनाया जाता है !

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